शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

निष्काम कर्मयोग के कीर्तिस्तम्भ स्वामी आत्मानंद

 27 अगस्त को पुण्यतिथि के अवसर पर

निष्काम कर्मयोग के कीर्तिस्तम्भ स्वामी आत्मानंद

                                                              प्रो. अश्विनी केशरवानी

    


रायपुर जिलान्तर्गत मांढर से लगे गांव बरबंदा में कपसदा के मालगुजार श्री मंसाराम वर्मा के पुत्र श्री धनीराम और श्रीमती भाग्यवती के पुत्र रत्न के रूप में 06 अक्टूबर सन् 1929 को प्रातः 6.32 बजे विशाखा नक्षत्र में एक अद्भूत बालक का जन्म हुआ। सुन्दर सलौने और सूर्य के समान तेजस्वी इस बालक ने छत्तीसगढ़ को वेदांतीय आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बनाया और स्वामी आत्मानंद के नाम से जग प्रसिद्ध हुआ। माता-पिता दोनों उन्हें महादेव का प्रसाद और आशीर्वाद समझ कर ग्रहण किया और उन्हें रामेश्वर नाम दिया।

बालक रामेश्वर अत्यंत सुन्दर और सुशील थे। उनके केश काले और घुंघराले तथा आंखें चित्ताकर्षक थी। सारा गांव उनसे स्नेह रखता था। चार वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अपने पिता से हारमोनियम बजाना और गीत गाना सीख लिया। स्कूल और गांव के कार्यक्रमों में हारमोनियम के साथ भजन गाकर वे सबको चमत्कृत कर देते थे। मेट्रिक की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की। तत्पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए उन्हें नागपुर भेजा गया। वे वहां श्रीरामकृष्ण मिशन के छात्रावास में रहने लगे और वहां के हिस्लाप काॅलेज में भर्ती हो गये। आश्रम के पुनीत परिवेश में उनकी गगनगर्भी आध्यात्मिकता की भूख तीव्र हो गयी। वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव और स्वामी विवेकानंद की भावधारा से अनुप्राणित हो उठे। ऋषितुल्य सन्यासियों के सहचर्य में उन्हें अपने जीवन के महान् उद्देश्य का आभास होने लगा। आश्रम में उन्हें सब ‘‘तुलेन्द्र’’ के नाम से पुकारते थे। उनका जीवन बड़ा सात्विक था। धोती-कुरता उनकी पोशाक थी। उनका यही सादगीपन उन्हें विरागी होने का मार्ग दिखा। जब उनके पिता जी को उनके वैराग की ओर झुकाव का पता चला तब वे उन्हें वहां से हटाकर साइंस कालेज छात्रावास में दाखिल करा दिये। लेकिन उनका आश्रम से सतत संपर्क बना रहा। सन् 1949 में बी. एस-सी. की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की। पूरे विश्वविद्यालय में मेरिट में उनका दूसरा स्थान था। इसके बाद उन्होंने सन् 1951 में गणित विषय में एम. एस-सी. प्रथम श्रेणी और विश्वविद्यालय में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया। विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें ‘‘गोल्ड मेडल’’ प्रदान किया गया। उसने आई. ए. एस. की परीक्षा पास की और उसी समय विदेश में उच्च अध्ययन के लिये फेलोसिप की स्वीकृति मिली। लेकिन तब तक उन्होंने अपने जीवन के प्रयोजन को समझ चुके थे। उन्होंने न तो आई. ए. एस. अनना स्वीकार किया, न ही विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाना..। वे श्रीरामकृष्ण संघ में ब्रह्मचर्य व्रत में दीक्षित होकर आध्यात्मिक साधना में रत हो गये।

स्वजनों और परिजनों के लिए उनका विरागी होना एक अतुलनीय वज्रपात था। मगर वे कर भी क्या सकते थे ? सन् 1957 में ब्रह्मचारी तुलेन्द्र वर्मा विधिवत ब्रह्मचर्य मंत्र में दीक्षित हुए और उन्हें ‘‘ब्रह्मचर्य तेज चैतन्य’’ नाम दिया गया। श्रीरामकृष्ण आश्रम नागपुर में वे लगभग 8 वर्ष तक रहे। इन वर्षो में वे कठोर साधना में लीन रहे। ब्रह्मचर्य दीक्षा के उपरान्त ब्रह्मचर्य तेज चैतन्य में एक दैवीय विकलता का सूत्रपात हुआ। उन्हें स्पष्ट आभास होता था कि उनके जीवन की सुनिर्दिष्ट दिशा है और उन्हें एक महान कार्य करना है। किंतु कर्मक्षेत्र में पदार्पण करने के पूर्व वे आध्यात्म राज्य की महात्म्य उपलब्धियों को प्राप्त करना चाहते थे। उन्हें प्रतीत होता था कि आध्यात्मिकता का महान् क्षेत्र हिमालय उनका आव्हान कर रहा है। सन् 1959 के प्रारंभ में वे कठिन आध्यात्मिक साधना के लिए निकल पड़े। अनेक संत महात्माओं के सत्संग में रहने के बाद कर्मक्षेत्र में पदार्पण करने को उद्यत हुए। उनका कार्यक्षेत्र अब स्पष्ट था। वे रायपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाना चाहते थे। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद अपने बाल्यकाल के दो वर्ष रायपुर में व्यतीत किये थे। उन्होंने रायपुर में एक आश्रम निर्माण की दिशा में प्रयास किया। नगर पालिका भवन में वे हर सप्ताह प्रवचन देने लगे। उनका अंतरगर्भी आध्यात्मिकता उन्हें अल्प समय में लोकप्रिय बना दिया। सन् 1960 में वे तपस्या करने अमरकंटक चले गये। यहां उन्होंने पुण्य सलिला नर्मदा के तट पर सन्यास ग्रहण किया और ‘‘स्वामी आत्मानंद’’ कहलाये। अमरकंटक से लौटने पर वे रायपुर में आश्रम निर्माण को गति प्रदान किये और स्वामी विवेकानंद आश्रम उनके संबल के कारण ही आकार ग्रहण कर सका। श्रीरामकृष्ण धारा को प्रचारित करने के लिए उन्होंने पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। पुस्तकालय, औषधालय, छात्रावास और सत्संग भवन की योजना 3 वर्ष में पूरा किया। यह उनके जीवन साधना का सुफल और आध्यात्मिकता की साकार कहानी है।

स्वामी आत्मानंद की लोकोपयोगी योजना को फलिभूत करने के लिए म. प्र. शासन द्वारा श्रीरामकृष्ण सेवा समिति को भूमि प्रदान की और योजना साकार हो सकी। आश्रम का चलित औषधालय गांव गांव में निःशुल्क चिकित्सा प्रदान करता है। छात्रावास में विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था है। उनके पढ़ने के लिए पुस्तकालय भी है। सन् 1985 में सुदूर बस्तर के नारायणपुर और अबूझमाड़ क्षेत्र में ‘‘वनवासी सेवा केंद्र’’ की स्थापना की। दुर्गम स्थलों जैसे कुतुल दूरकभट्टी, आकाबेड़ा, कच्चापाल और कुंदला के माड़िया बस्तियों में रेसिडेंसियल स्कूल, उचित मूल्य की दुकानें और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की स्थापना करायी। 27 अगस्त सन् 1989 को नागपुर से रायपुर लौटते एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी। इतनी सहजता से उन्होंने मृत्यु का वरण कर लिया और हमें विलखता छोड़ गये... हमारी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है। छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा उनकी स्मृतियों को चिरस्थायी बनाने के लिए स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू किया गया है और कालेज भी शुरू करने की योजना है।  इस सद्प्रयास के लिए छत्तीसगढ़ शासन को साधुवाद। 


 


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