शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

रथयात्रा: बदलते संदर्भ

रथयात्रा: बदलते संदर्भ
                            प्रो. अश्विनी केशरवानी
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को छत्तीसगढ़ के अनेक नगरों और ग्राम्यांचलों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी को एक रथ में बिठाकर श्रद्धा पूर्वक उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। मुझे मेरे बचपन की बात याद आती है जब मुझे साल में दो बार-रथयात्रा और दशहरा में पहनने को नये कपड़े और खर्च करने को विशेष रूप से पैसा मिलता था..खाने को मिठाई, जामुन, पिनखजुर और न जाने क्या क्या मिलता था। चाची, बुआ, ताई, दादी, भाई, बहन सभी खुश रहते थे- रथयात्रा में सबसे भेंट जो हो जाती थी। लेकिन आज मेरी ये बातें सिर्फ सोच बनने की रह गयी है। पहले इस दिन बहु‘बेटियों को लिवा लाना आवश्यक होता था, लेकिन आज बुजुर्गो की बात मानता कौन है। आज के भौतिकतावादी युग में रथयात्रा को जानने समझने का किसी के पास समय नहीं है। मेरी बिटिया तृप्ति मुझसे पूछती है-’ पापा ये रथयात्रा क्या होता है..?’... और जब मैं उन्हें बताता हंू कि बेटा, रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की रथ में शोभायात्रा निकलती है। पूरे नगर में रथ परिक्रमा करती हुई जनकपुर पहुंचती है। वहां भगवान एक सप्ताह विश्राम करते हैं और विजियादशमी को पुनः रथ में बैठकर नगर की परिक्रमा करते वापस आते हैं।
    ‘...लेकिन पापा, रथ नगर की परिक्रमा क्यों करता है और रथ में सवार भगवान भाई-बहन क्यों हैं ?’ थोड़े समय के लिए मैं भी सोच में पड़ गया, मैं मन ही मन सोचने लगा ‘ आखिर जीत की खुशी में भी तो नगर की परिक्रमा की जाती है, फिर भला रथयात्रा को नगर भ्रमण कराने में क्या हर्ज है..?’ बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उनके प्रश्न तर्कपूर्ण होते हैं और उन्हें प्रत्युत्तर भी तर्कपूर्ण चाहिए। मैं उन्हें समझाता हूँ -‘..बेटा जनकपुर नगर के बाहर होता है जहां रथयात्रा पूरी होती है इसलिए रथयात्रा में रथ को नगर भ्रमण कराना अपरिहार्य होता है। रथयात्रा का मकसद लोक कल्याण भी है..और फिर भगवान जगन्नाथ ही तो अकेले देवता हैं जो लोगों के बीच जाकर उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं। हर गली-चैराहे में और अपने घर के सामने औरत, मर्द और बच्चे उनकी पूजा-अर्चना करके और रथ को खींचकर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। जगन्नाथ पुरी में तो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी चलकर रथ तक आते हैं और जन समुदाय उन्हें स्पर्श कर प्रणाम करते हैं। पंडे और पुजारी आगे पीछे लोगों को हटाते जाते हैं, कोई पंखा झलता है, कोई भजन गाता है और भगवान की जै जैकार करता है। श्रद्धालुओ की भीड़ भगवान की एक झलक पाने, उन्हें स्पर्श करने और उनके रथ को खींचकर पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए उमड़ पड़ती है। उड़िया महिलाएं मुंह से एक विशेष प्रकार की आवाज निकालती है जिसे ‘‘हुलहुली’’ कहा जाता है। इस प्रकार की आवाज उड़िया महिलाएं पूजा करते समय हमेशा निकालती हैं।
‘...लेकिन पापा, भगवान को ट्रेक्टर और ट्रक में क्यों नहीं ले जाते ? हम लोग तो गणेश जी और दुर्गा माता को ट्रेक्टर में ले जाते हैं।’ विशू का प्रश्न मुझे आश्चर्यचकित कर देता है।
मैं उन्हें समझाता हूँ  बेटा, रथ की अपनी महत्ता है। सांख्य दर्शन के बनुसार शरीर के 24 तत्वों के उपर आत्मा होती है। इनमें पांच महातत्व, पांच तंत्र माताएं, दस इंद्रियां, मन, बुद्धि और चित्त तथा अहंकार होते हैं। दस इंद्रियों और मन के प्रतीक रथ है। रथ का स्वरूप श्रद्धा के रस से परिपूर्ण होता है। वह चलते समय आवाज करता है। उसमें धूप और अगरबत्ती की सुगंध होती है। भक्तजनों का पवित्र स्पर्श उन्हें प्राप्त होता है। रथ का निर्माण बुद्धि,चित और अहंकार से होता है। ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा की ओर संकेत करता है। रथयात्रा के समय रथ का संचालन आत्मा युक्त शरीर करता है जो जीवन यात्रा का प्रतीक है। यद्यपि शरीर में आत्मा होती है फिर भी वह स्वयं संचालित नहीं होता बल्कि माया उसे संचालित करती है। इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर भी रथ स्वयं नहीं चलता बल्कि उसे चलाने अथवा खींचने के लिए लोकशक्ति की आवश्यकता होती है...।
  

जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी का अलग अलग रथ होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष, बलभद्र जीे के रथ को तालध्वज और सुभद्रा जी के रथ केा देवलन कहा जाता है। जगन्नाथ जी का रथ 65 फीट लंबा , 65 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊंचा होता है। इसमें 7 फीट व्यास के 17 पहिये लगे होते हैं। बलभद्र और सुभद्रा जी के रथ इससे कुछ छोटे होते हैं।... और जहां तक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी के भाई-बहन के रूप में पूजित होने का प्रश्न है तो ये वास्तव में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। ब्रह्मा की पूजा केवल नारी रूप में होती है। अतः सुभद्रा ब्रह्मा जी की प्रतीक हैं। अलेक्जर कनिंघम के अनुसार ये तीनों बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं। इन्हें क्रमशः जगन्नाथ जी को भगवान बुद्ध, बलभद्र जी को धम्म और सुभद्रा जी को संघ का प्रतीेक माना गया है। उड़ीसा और उसके सीमावर्ती क्षेत्रों में बौद्ध तांत्रिकों का प्रभाव रहा है जिसके अवशेष आज भी देखा जा सकता है।
‘....तो क्या रथयात्रा पूरे उड़ीसा में होता है ?’ विशू ने जिज्ञासा भरा प्रश्न किया। मैंने उन्हें बताया-’’समूचे उड़ीसा में रथयात्रा बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। जगन्नाथ पुरी में तो रथयात्रा अद्वितीय होता है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों लाखों पर्यटक यहां आते हैं। यहां के राज परिवार को प्रथम पूजा का अधिकार होता है। पूजा-अर्चना के बाद राजा रथ के सामने झाड़ु लगाते जाते हैं..आज भी यह परम्परा यहां देखने को मिलता है। यहां भगवान जगन्नाथ की सत्ता सर्वोच्च होती है।’’
जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने वाले राजा, महाराजा, जमींदार, गौंटिया वहां से अपने साथ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की विग्रह मूर्तियों को लाते गये और अपने नगर में स्थापित कर उड़ीसा की परम्पराओं को यहां प्रचलित किये। छोटे रूप में ही सही, रथयात्रा यहां आज भी निकाली जाती है।
छत्तीसगढ़ के अन्यान्य नगरों- सारंगढ़, रायगढ़, सक्ती, चाम्पा, नरियरा, रायपुर, राजिम, बिलासपुर, रतनपुर बस्तर, जशपुर, धरमजयगढ़, और सरगुजा में भी जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की रथयात्रा निकलती है। बस्तर की रथयात्रा में थोड़ी भिन्नता होती है। बस्तरिया आदिवासी इसे ‘‘गोन्चा परब’’ के रूप में मनाते हैं। यह उनका विशेष पर्व होता है। रायपुर में रथयात्रा दूधाधारी मठ से, बिलासपुर में वेंकटेश मंदिर से और अन्य स्थानों में जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकलती है। चाम्पा में जमींदार रूद्रशरणसिंह ने जगन्नाथ मंदिर बनवाया। इसी प्रकार सारागांव में श्री काशीप्रसाद राठौर के पूर्वज हटरी चैंक में और रगजा में श्री घासीराम चौधरी ने सन 1926 में जगन्नाथ मंदिर बनवाया था। शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ का जगन्नाथ पुरी और राजिम को साक्षी गोपाल माना गया है। स्कंदपुराण में और उड़िया साहित्य में भगवान जगन्नाथ को शिवरीनारायण से पुरी ले जाने  का उल्लेख मिलता है। शिवरीनारायण में आज भगवान जगन्नाथ का नारायणी रूप विराजमान हैं। उनके चरण को स्पर्श करती ’’रोहिणी कुंड’’ स्थित है जिसकी महिमा अपार है। प्राचीन कवि श्री बटुकसिंह रोहिणी कुंड को एक धाम मानते हुए उनके दर्शन को मोक्षदायी बताया हैः-
रोहिणी कुंड एक धाम है, है अमृत का नीर
बंदरी से नारी भई,  कंचन भयो शरीर।
जो कोई नर जाइके, दर्शन करे वही धाम
बटुकसिंह दरशन करी, पाये पद निर्वाण।।
छत्तीसगढ़ में रथयात्रा के दिन को बड़ा शुभ माना जाता है। इस दिन बेटी विदा और बहू को लिवा लाने की विशेष परम्परा है। अन्य शुभ कार्य भी इस दिन किये जाते हैं। नाते रिश्तेदारों के घर मेवा-मिष्ठान भिजवाने की भी प्रथा है। यह लोक भावना से जुड़ा हुआ पर्व है। इससे सद्भावना का विकास होता है। इसमें जात पात का भेद नहीं होता। इसीलिए कवि गाते हैं:-
मास अषाढ़ रथ दुतीया, रथ के किया बयान।
दर्शन रथ को जो करे, पावे पद निर्वान ।।

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