रविवार, 3 जुलाई 2011

छत्तीसगढ़ के साहित्यिक परिदृश्य का साक्षी श्यामा

    भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सहपाठी और मित्र, विजयराघवगढ़ के राजकुमार तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार ठाकुर जगमोहन सिंह के लिए छत्तीसगढ़ की धरती, पहाड़, जंगल और नदी-नाले वरदान साबित हुआ। ब्रिटिश शासकों ने बनारस के वार्ड्स इंस्टीट्यूट से शिक्षा प्राप्त ठाकुर जगमोहनसिंह को सन् 1880 में नायब तहसीलदार बनाकर छत्तीसगढ़ के धमतरी भेजा तब उनकी मंशा रही होगी कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में वह मर खप जायेगा और अपने राज्य की ओर ध्यान नहीं दे सकेगा ? मगर छत्तीसगढ़ प्रवास उनके लिए वरदान साबित हुआ। ठाकुर साहब सन् 1880 से 1882 तक धमतरी में और उसके बाद 1887 तक शिवरीनारायण तहसील के तहसीलदार रहे। उन्हें यहां की सोंधी मिट्टी, नदी, नाले, जंगल और पहाड़ की प्राकृतिक सौंदर्य बहुत अच्छा लगा, उनकी रचनाएं इसका साक्षी है। शिवरीनारायण में भगवान शबरीनारायण का आशीर्वाद, चित्रोत्पलागंगा का संस्कार और सत्पुरूषों का सानिघ्य मिला। यहां उनका कवि मन न केवल जागा बल्कि उसे समेटने के लिए उन्हें कोरे कागजों को रंगना पड़ा। लगभग एक दर्जन पुस्तकों का न केवल लेखन बल्कि उसका प्रकाशन करके वे अमर हो गये। हिन्दी साहित्य के इतिहास में छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों को भले ही स्थान न मिला हो मगर ठाकुर साहब की साहित्यिक प्रतिभा को अवश्य स्थान दिया गया है। उन्होंने शिवरीनारायण में बनारस के ‘भारतेन्दु मंडल‘ की तर्ज में ‘जगन्मोहन मंडल‘ बनाया और यहां के बिखरे साहित्यकारों को एकसूत्र में पिरोकर उन्हें लेखन की एक दी । उस काल के साहित्यकारों में पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविंद साव, महंत अर्जुनदास, महंत गौतमदास, शिवरीनारायण, पंडित अनंतराम पांडेय रायगढ़, पंडित मेदिनीप्रसाद पांडेय परसापाली-रायगढ़, वेदनाथ शर्मा बलौदा, पंडित पुरूषोत्तम प्रसाद पांडेय बालपुर, जगन्नाथ प्रसाद भानु, पृथ्वीपाल तिवारी बिलाईगढ़, के नाम उल्लेखनीय तो है ही उसके पूर्व और बाद के साहित्यकारों की भी लंबी श्रृंखला है। इससे छत्तीसगढ़ के साहित्यकाश को हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखकों द्वारा उपेक्षा करने की बातों की पुष्टि होती है। ठाकुर जगमोहनसिंह हिन्दी के प्रसिद्ध प्रेमी कवियों रसखान, आलम, घनानंद, बोधा ठाकुर और भारतेन्दु हरिश्चंद्र की परंपरा के अंतिम कवि थे जिन्होंने प्रेममय जीवन जीया और जिनके साहित्य में प्रेम की उत्कृष्ट और स्वभाविक अभिव्यंजना हुई है। प्रेम को उन्होंने जीवन दर्शन के रूप में स्वीकार किया था।
    उपर्युक्त तथ्यों को ठाकुर जगमोहनसिंह की रचनाओं के संग्रह ‘‘श्यामा‘‘ में संग्रहित और संपादित करने वाले प्रो. अश्विनी केशरवानी भी महानदी से संस्कारित पौध हैं। उन्होंने इस पुस्तक में ठाकुर साहब की शिवरीनारायण से संबंधित रचनाओं जैसे सज्जनाष्टक, प्रलय, श्यामा सरोजनी के साथ नवोढ़ादर्श और पं. रामलोचन त्रिपाठी का जीवन वृत्तांत को संग्रहित किया है। उनकी मंशा शिवरीनारायण के साथ पूरे छत्तीसगढ़ की साहित्यिक पृष्टभूमि को रेखांकित करना है। द्विवेदी कालीन अनेक साहित्यकारों ने भी उल्लेखनीय साहित्य की रचना की और राष्टीय परिदृश्य में स्थान बनाया। 
    ठाकुर जगमोहनसिंह ने शिवरीनारायण के आठ सज्जन व्यक्तियों के व्यक्तित्व का रेखांकन ‘सज्जनाष्टक‘ में किया है जो सन् 1884 में भारत जीवन प्रेस बनारस से प्रकाशित हुआ। देखिये उसकी एक बानगी-
        रहत ग्राम एहि बिधि सबै सज्जन सब गुन खान।
        महानदी सेवहिं सकल जननी सब पय पान।।
प्रलय में 1885 में महानदी के बाढ़ और उससे होने वाली तबाही का सुंदर छंद में वर्णन है ः-
        शिव के जटा विहारिनी बही सिहावा आय।
        गिरि कंदर मंदर सबै टोरि फोरि जल जाय।।
        राजिम, श्रीपुर से सुभग चम्पव उद्यान।
        तीरथ शिबरी विश्णु को तारत वही सुजान।।
        सम्बलपुर चलि कटक लौ अटकी सरिता नाहि।
        सरित अनेकन लय कटकपुरी पहुंच जल जाहि।।
    हालांकि इस पुस्तक में ठाकुर साहब की बहुचर्चित उपन्यास श्यामा को सम्मिलित नहीं किया गया है मगर उसके बारे में अवश्य लिखा गया है। उनकी कृतियां आज उपलब्ध नहीं है, मगर जो उपलब्ध है उसका संग्रह और प्रकाशन करना निश्चित रूप से सराहनीय कार्य है।
                               
                                            समीक्षक
                                          प्रांजल कुमार,
                                    वेन, न्यू जर्सी, यू.एस.ए.  

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