शनिवार, 11 जून 2022

निरंजन केशरवानी


छत्तीसगढ़ के जननेता निरंजन केशरवानी

                                                           प्रो अश्विनी केशरवानी

08 फरवरी 1994 को फोन पर सूचना मिली कि श्री निरंजन केशरवानी का आयुर्वेद विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में निधन हो गया। दूसरे दिन सभी अखबारों की सुर्खियों में इसे प्रकाशित किया गया। किसी ने लिखा-’छत्तीसगढ़ के शेर अब नहीं रहे...’, किसी ने लिखा-’छत्तीसगढ़ ने अपना एक जुझारू नेता खो दिया।यह समाचार समूचे छत्तीसगढ़ को रूला दिया। यों किसी एक व्यक्ति के निधन से कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर श्री निरंजन केशरवानी किसी भी मायने में एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे एक ऐसे वट वृक्ष थे जिनके साये में अनेक व्यक्ति उभरे, फूले फले और राजनीति के शिखर पर पहुंचकर आज जगमगा रहे हैं। ऐसे अनेक व्यक्ति को मैं अच्छी तरह से जानता हंू जिनके वे प्रेरणास्रोत थे। वे एक अच्छे वक्ता, कुशल अधिवक्ता और राजनेता ही नहीं बल्कि अच्छे पथ प्रदर्शक भी थे। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि वे मेरे जैसे अनेक लोगों से वाद-विवाद करते थे और अपनी बातों को कुछ इस तरह से रखते थे कि हमें उनकी बातों से सहमत होना ही पड़ता था। वे ऐसे ऐसे तथ्य प्रस्तुत करते थे कि हमें जवाब देना मुश्किल हो जाता था। सामाजिकराजनीतिकर्, अिर्थक, वाणिज्यक और मेडिकल साइंस, सभी क्षेत्रों में उनकी समान पकड़ थी।

       वे राजनीति के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के शेर कहलाते थे। उनकी दहाड़ से जहां अच्छे अच्छे राजनेता और अधिकारियों की हालत पतली हो जाती थी, वहीं उनके अकाट्य तर्को के सामने सबको उनकी बात माननी पड़ती थी। जब चैधरी चरणसिंह प्रधानमंत्री थे और बिलासपुर आये थे। सर्किट हाउस में उनसे मिलने वालों का तांता लगा था, तब बिलासपुर लोकसभा के सांसद श्री निरंजन केशरवानी थे। उस समय बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र को अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट बनाने की सिपारिस की जा चुकी थी। केसरवानी जी ने उनसे पूछा किआपने वर्तमान सांसद से बिना सलाह मशविरा किये इसे सुरक्षित सीट कैसे घोषित कर दिया ?’ सवाल जवाब के बीच ऐसी स्थिति गयी कि उन्हें पुनर्विचार का आश्वासन देना पड़ा। उनकी इस निर्भिकता से जनता बहुत प्रभावित हुई और उन्हें अपने सर-आंखों में बिठा लिया। वे एक सफल अधिवक्ता भी थे। वे तथ्यों को जिस तरह से पुस्तुत करते थे कि विद्वान न्यायधीश भी चकित रह जाते थे। बिलासपुर और मुंगेली में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में उनकी गिनती एक सफल अधिवक्ताओं में होती थी।

       अनूठे व्यक्तित्व के धनी श्री निरंजन केशरवानी का जन्म उनके ननिहाल झलमला, जिला दुर्ग में 13 जून सन् 1930 में हुआ। उनकी प्राथमिक और हायर सेकंेडरी शिक्षा मुंगेली में हुई। उच्च शिक्षा बिलासपुर बनारस में हई। कानून की शिक्षा उन्होंने नागपुर के मारिस काॅलेज से ग्रहण की। सरल स्वभाव और नेतृत्व क्षमता के कारण वे अपने छात्र जीवन में स्कूल और कालेज में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। उनके सहपाठी श्री श्रीपति बाजपेयी ने चर्चा के दौरान मुझे बताया कि केशरवानी जी, श्री राजेन्द्रप्रसाद शुक्ला सहपाठी थे। दोनों शुरू से ही राजनीतिक प्रतिद्वन्दी और बहुत अच्छे मित्र थे। उनमें किसी किसी बात को लेकर अक्सर तकरार हो जाती थी, तब मुझे ही बीच-बचाव करनी पड़ती थी। आगे चलकर दोनों राजनीति में आए और राजनीतिक प्रतिद्वन्दी बने। उनके छा़त्र जीवन के ऐसे अनेक संस्मरण डाॅ. गजानन शर्मा भी बताते नहीं अघाते थे। उन्होंने बताया कि उनकी विशेष रूचि समाज, साहित्य और राजनीति में थी।

       कानून की शिक्षा उन्होंने नागपुर से उन दिनों प्राप्त की जब सी. पी. एंड बरार प्रदेश की राजधानी नागपुर में थी और उनके पिता श्री अम्बिकाप्रसाद साव रामराज्य परिषद से विधायक थे। राजधानी होने से वे वहां हमेशा जाया करते थे और वहां उनकी बेटी और दामाद भी रहते थे। एक बार वे अपने पिता जी को रेल्वे स्टेशन पहुचाकर लौट रहे थे तभी रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। इस हादसे में डाॅक्टरों की लापरवाही के कारण उनका एक पैर काटना पड़ा था। मगर उनके पिता और माता जी का असीम स्नेह और सहधर्मिणी श्रीमती सरोजनी देवी के सहयोग से उन्होंने अपने जीवन की नैया पार कर ली। उन्होंने अपने जिन्दगी को खूब जिया और अपनी विकलांगता को कभी आड़े नही आने दिया। उन्होंने नागपुर में छत्तीसगढ़ के विद्यार्थियों का एकछत्तीसगढ़ क्लबभी बनाया था। वे अपने मित्रों और सहपाठियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे। एक वाकिये का जिक्र करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि एक बार बालपुर के पंडित लोचन प्रसाद पांडेय के पुत्र की तबियत बिगड़ गयी और उनकी हरकतों से सभी परेशान होने लगे तो उन्हें रायगढ़ तक छोड़ने के लिए किसी को भेजने का निश्चय हुआ। तब उनकी जिद पर उन्हें रायगढ़ तक पहुंचाने आना पड़ा था।

       स्मृतियां चलचित्र की भांति मेरे जेहन में घूमने लगती है। मेरी उनसे पहली मुलाकात सारंगढ़ में केशरवानी भवन के उद्घाटन के अवसर पर हुई। वे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। मैं एम. एस-सी. की पढ़ाई पूरी करके लौटा था। समाजिक गतिविधियों में मेरी पहले से ही गहरी रूचि थी। मैंने शिवरीनारायण मेंकेशरवानी यूथ सोसायटीभी बनायी थी जिसका मैं अध्यक्ष था। इस सामाजिक कार्यक्रम में उन्होंने मुझे ही नहीं बल्कि हमारी नवयुवकों की जमात को अपना स्नेह और संबल प्रदान किया। मुझे वे अपने बगल में बिठाये और मेरी बातों को ध्यान पूर्वक सुनते रहे यही नहीं बल्कि मेरी बातों का पूरा समर्थन किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने मेरी बातों का जिक्र करके मुझे प्रोत्साहित किया। इस घटना ने उनके प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा भर दी। संयोग कहें या फिर ईश्वर की लीला मैं उनका दामाद बना। फिर तो कई बार मुझे उनका सानिघ्य मिला। वे हमसे केवल चर्चा ही नहीं करते बल्कि वे हमारा मार्गदर्शन भी किया करते थे। मैं उनकी मेडिकल साइंस और विज्ञान में पकड़ देखकर आश्चर्यचकित हो जाया करता था। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी स्मृतियां हमें आज भी उनका स्मरण कराती है। वे हमें बहुत याद आते हैं और हमारी आंखें नम हो जाती है।

       उनके कई मित्रों, सहयोगियों, सहपाठियों और राजनेताओं से मुझे मिलने और चर्चा करने का मौका मिला। वे हमेशा उनकी निर्भिकता, दबंगता, साहस और सबको साथ लेकर चलने की कला का जिक्र करते अघाते नहीं थे। चाहे सामाजिक क्षेत्र हो अथवा राजनीति, कोर्ट का कटघरा हो अथवा होली के अवसर पर महामूर्ख सम्मेलन, सभी में अवश्य शिरकत करते थे। राजनीति तो उन्हें अपने पिता श्री अम्बिका साव से विरासत में मिली थी। कानून की परीक्षा पास करके उन्होंने वकालत शुरू की, तब उनके पिता दूसरी बार चुनाव लड़े जिसमें उन्होंने पूरी सक्रियता से भाग लिया। अंचल के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता और पूर्व सांसद      श्री रामगोपाल तिवारी के सानिघ्य में उन्होंने वकालत शुरू की थी। उसके बाद वकालत के क्षेत्र में वे आगे बढ़ते ही गए। समय गुजरता गया और वे वकालत में उलझते गए। इस बीच छत्तीसगढ़ में कई हादसे हुए जिनकी गुत्थियों को उन्होंने सुलझाया। चाहे गुरवाइन-डबरी का गोलीकांड हो, चांपा और पांडातराई का गोलीकांड हो, डाॅ. शक्रजीत नायक का दल बदल प्रकरण हो या जंगबली-बजरंगबली प्रकरण, सभी में उन्होंने निःस्वार्थ भावना से पैरवी कर अपनी सक्रियता और जननेता होने का परिचय दिया। उनके इन कार्यो से उन्हें प्रसिद्धि ही नहीं मिली बल्कि उन्हें लोगों का असीम प्यार और विश्वास मिला। इससे सत्ताधीशों की नींद हराम हो गयी। उन्हें हमेशा विपक्ष की राजनीति रास आयी और वे रामराज्य परिषद, जनसंघ, जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे। सन् 1975 के अपातकाल में 19 माह वे जेल में रहे और जेल की बुराईयों को दूर करने के लिए संघर्ष करते रहेे। इसी कारण 19 माह की अवधि में उन्हें कई जेलों में स्थानान्तरित किया गया। 1977 में उन्हें जेल से मुक्ति मिली और जनता पार्टी की टिकट पर वे बिलासपुर लोकसभा सीट से सांसद बने। लोगों ने उन्हें अपने सर-आंखों पर बिठाया। उन्होंने अपने पिता श्री अम्बिका साव की स्मृति में बिलासपुर में अम्बिकासाव स्मृति स्वर्ण कप हाकी टूर्नामेंट शुरू कराया था। इसके पूर्व वे सन् 1967 में लोरमी-पंडरिया से विधानसभा चुनाव लड़े और हार गए लेकिन इससे उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा मिली और सन् 1974 में जरहागांव-पथरीया विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीते। पार्टी के निर्देश पर उन्होंने अकलतरा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा। सन् 1990 में लोरमी-पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते। वे मुंगेली नगरपालिका के लोकप्रिय अध्यक्ष भी रहे। बिलासपुर को-आपरेटिव्ह बैंक के संचालक और भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे। उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आये लेकिन वे कभी विचलित नहीं हुए, ही उनकी दबंगता और निर्भीकता में अंतर आया। राजनीति में पार्टी के नेता तो क्या सत्ता पक्ष के नेता भी उनका लोहा मानते थे और उनका आदर करते थे। संभवतः यही कारण है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका महवपूर्ण स्थान था। पार्टी के नेता उन्हें अपना सर्वमान्य नेता मानते थे। डाॅ. गजानन शर्मा उन्हें अपना एक जिज्ञासु और साहित्य के विद्यार्थी के रूप में देखते थे तो स्वजातीय उन्हें अपना सर्वमान्य प्रमुख। अंतिम समय में नागपुर और दिल्ली के अस्पताल में वे जिंदगी और मौत से जूझते रहे। वे बहुत कुछ चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे, तब उन्हें पहली बार राजनीति में आने का दुःख हुआ। हालांकि अनेक मित्र अंतिम समय तक उनके साथ रहे मगर अंततः वे जिंदगी से हार गए। इस अंतिम यात्रा में वे अपने मित्रों, स्वजनों, परिजनों को याद करते रहे। वे मुंगेली को जिले के रूप में देखना चाहते थे और आज जब मुंगेली जिला बन गया है तब उनकी केवल स्मृतियां हैं। वे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। कदाचित् इसी कारण उनके अनुज श्री निर्मलप्रसाद केसरवानी ने उन्हें अलख निरंजन कहा करते हैं, वही निरंजन जो जीवन भर अलख जगाते रहे। हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।


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